रामधारी सिंह दिनकर जीवन परिचय
जीवन परिचय- रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन 1908 ईसवी ( संवत 1965 वि.) बिहार के मुंगेर जनपद के सिमरिया घाट नामक ग्राम में हुआ था इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा इनकी माता का नाम श्रीमती मन रूपा देवी था। दिनकर की कविताओं में छायावादी यूग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण देखने के लिए मिलते हैं। रामधारी सिंह दिनकर जब 2 वर्ष के थे तभी इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद इनके भाई बहन तथा इनका पालन-पोषण इनकी माता जी ने किया। क्योंकि रामधारी सिंह दिनकर के पिता एक किसान थे तो इनका जीवन खेत खलियान तथा प्रकृति के सुंदर वातावरण में बिता।जिसका प्रभाव दिनकर जी पर पूरा पूरा पड़ा। इनकी शिक्षा की शुरुआत इनके ही गांव के प्राथमिक स्कूल से शुरू हुई। बाद में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से b.a. किया।
इसके बाद इन्होंने 1 वर्ष मोकामा घाट के विद्यालय में प्राचार्य रहे। इसके बाद सन 1935 ईस्वी में सब रजिस्ट्रार की सरकारी नौकरी मिल गई। तथा बाद में ब्रिटिश सरकार के उप-निदेशक के पद पर भी रहे। मुजफ्फरपुर कॉलेज में इन्होंने हिंदी विभाध्यक्ष के रूप में भी काम किया। बाद में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी चुना गया। तथा भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर थी इनकी नियुक्ति हुई। तथा दिनकर जी को राष्ट्रपति के द्वारा उनके प्रतिभा और साहित्य के लिए पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया। तथा दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्रदान किया गय। हिंदी के उत्थान के लिए दिनकर जी ने महत्वपूर्ण कार्य किए। हिंदी साहित्य के महान कवि दिनकर जी का सन 1974 ईस्वी में मृत्यु हो गई।
रामधारी सिंह दिनकर जीवन परिचय
रचनाएं- रेणुका,हॅुकार,रसवंती,द्वंद गीत ,सामधेनी, कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी , परशुराम की प्रतिज्ञा, नए सुभाषित, कोयला और कवित्व , आत्मा की आंखें दिनकर जी की आधी रचना है प्रमुख है।
भाव पक्ष –दिनकर जी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने देश तथा समाज को अपने काव्य का विषय बनाया तथा हिंदी काव्य को एक नई दिशा प्रदान की। शंकर जी ने अपनी कविताओं में पूंजीपतियों और शासक वर्ग के लोगों के द्वारा निम्न वर्ग के लोगों पर हो रहे अत्याचारों का सचित्र वर्णन किया। उन्होंने गरीबों मजदूरों तथा किसानों के प्रति अपनी संवेदनाएं तथा विशेष सहानुभूति अपने गीतों के माध्यम से प्रकट की उनका उद्देश्य था कि वह अपने गीतों के माध्यम से मजदूर तथा गरीबों के ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध एक क्रांति लाना चाहते थे हिंदी काव्य का अध्ययन करने तथा सुनने वाले को आनंद की अनुभूति होती है दिनकर जी ने दिनकर जी को अपने देश के प्रति बहुत लगाव था तथा वहां अपने गीतों के माध्यम से अपने देश प्रेम तथा देश की हित के लिए सदैव तत्पर रहते थे।
कला पक्ष
भाषा- दिनकर जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली है। उनके काम में उनकी खड़ी बोली का प्रारूप मिलता है। उनका शब्द चयन अत्यंत स्पष्ट और भाव अनुकूल होता है। वह अपनी भाषा में अधिकांश तत्सम शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनके शब्दों में व्याकरण की अशुद्धियां तनिक भी दिखाई नहीं पड़ती है।
शैली- दिनकर जी की शैली ओज प्रधान है। उनके काम में सजीवता के स्पष्ट रूप दिखाई पड़ते हैं। उनके काव्य में तन्मयता उनकी एक विशेष विशेषता है। उनके विषय में उनके काव्य के आधार पर भावनात्मक तथा गंभीर विषयों पर विवेचनात्मक शैली के प्रभाव भी दिखाई पड़ते हैं।
अलंकार – इनकी रचनाओं में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा तथा श्लेष अलंकार ओं का प्रयोग किया गया है इन्होंने अलंकारों के शुद्धतम रूप का सर्वत्र प्रयोग किया है।
साहित्य में स्थान- दिनकर जी अपने युग के प्रतिनिधि कवि है। उनकी भाषा मैं रोस तथा उनके भाव में क्रांति की ज्वाला और उनकी शैली में प्रवाह है भी दिखाई पड़ती है। वे आधुनिक हिंदी काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि हैं। दिनकर जी अपनी भाषा शैली तथा अपने निम्न वर्गों के लोगों के प्रति सदैव सजग रहे। तथा उनके उत्थान के लिए हमेशा कार्य करते रहे हैं। जिसके लिए उन्हें हमेशा स्मरण किया जाता रहेगा।
दैनिक जीवन मे खेलो के महत्व पर निबंध
Leave a Reply
You must be logged in to post a comment.