Sumitranandan Pant Jivan Parichy/जीवन परिचय सुमित्रानंदन पंत
जीवन परिचय – सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन 1900 (संवत 1957 वि.) अल्मोड़ा जिला के कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गुसाई दत्त था। इनके पिता का नाम गंगा दत्त पंत तथा इनकी माता का नाम सरस्वती देवी था। इनके जन्म के कुछ समय पश्चात ही उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। माता के ना होने के कारण सुमित्रानंदन पंत ने प्रकृति के साथ ही रहना तथा अपना जीवन यापन करना सीखा था। जिससे कि वह प्रकृति से हमेशा जुड़े रहे। प्रारंभ में पंत जी छायावादी कवि रहे फिर प्रकृति वादी तथा बाद में या आध्यात्मिक कवि रहे इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गांव के विद्यालय से शुरू की, बाद में काशी से इन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा सेन्ट्रल म्योर कॉलेज से इन्होने एफ.ए का अध्ययन किया।
इसके बाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उसमें शामिल हो गए बाद में खुद ही इन्होंने अंग्रेजी संस्कृत और बंगला साहित्य का गहन अध्ययन किया। सुमित्रानंदन पंत जी की रुचि कविता करने की बचपन से ही थी । बाद में वहां संपादक बने तथा आकाशवाणी के अधिकारी भी बने, तथा इनहे हिंदी साहित्य के लिए पद्म भूषण से भी अलंकृत किया गय। तथा साहित्य अकादमी तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्रदान किया गया। प्रकृति तथा जीवन के प्रत्येक रूप का उन्होंने अपने काव्य में वर्णन किया प्रकृति से जुड़े रहे पंत जी एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे। जो आपस में एक दूसरे के सुख दुख का सहभागी बन सके। प्रकृति प्रेमी तथा छायावाद के कवि पंत जी का 19 सितंबर सन 1977 ईस्वी को पंत जी की मृत्यु हो गई ।
Sumitranandan Pant Jivan Parichy
रचनाएं – पंत जी की प्रमुख रचनाएं निम्न है
ग्रंथि
गुंजन
ग्राम्या
युगांत
स्वर्णकिरण
स्वर्णधुलि
कला और बूढ़ा चांद
लोकायतन
चिदंबरा
सत्यकाम
वाणी
युगपत
पल्लव
आदि रचनाएं पंत जी की है।
भाव पक्ष- प्रगतिवादी कवि पंत जी का स्वभाव अत्यंत सरल तथा कोमल था। उन्होंने अपने गांव में सरलता तथा कोमलता का ही वर्णन किया है। पंत जी बचपन से ही प्रकृति प्रेमी रहे हैं। क्योंकि प्रकृति के साथ ही उनका बचपन बीता जिसके कारण उनका संबंध प्रकृति से भावनात्मक एकता के साथ जुड़ा रहा। पंत जी के अनुसार जो कविता होती है वह अपने हृदय में उठ रहे किसी ना किसी विरह का गान होती है।पंत जी की कविता में प्रकृति के रूप रंग ध्वनि के सजीव चित्रण मिलते हैं जिसके कारण वह प्रकृति के बहुत बड़े प्रेमी है, इसका पता चलता है। छायावादी कवि पंत जी ने अपने काव्य में प्रेम भावनाओं को भी प्रस्तुत किया है। वह पीड़ित नारी के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हैं। पंत जी पर कार्ल मार्क्स का प्रभाव हमेशा से रहा है। तथा ईश्वर के प्रति उन्होंने अपने विचारों को भी व्यक्ति किया।
कला पक्ष
भाषा– पंत जी हिंदी साहित्य के कवि है। तथा उनकी भावनाओं से युक्त भाषा हृदय को स्पर्श करती है। तथा छायावाद से प्रभावित इनकी रचना में सजीव तथा कोमलता के सजीव चित्रण दिखाई पड़ते हैं। इनकी भाषा की तरलता के कारण इनकी कविताओ को सर्वत्र स्थान प्राप्त है।
शैली – पंत जी ने अपनी कविताओं में रूपक,उपमा,श्लेष तथा यमक अलंकार का प्रयोग किया है। तथा पंत जी की काव्य शैली इनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पंत जी ने अपनी रचनाओं में मानवीय भावना तथा नए अलंकारों का भी प्रयोग बहुत सुंदर रूप में किया है। इनकी कविताओं में परंपरागत तथा नये छंद का प्रयोग भी किया गया है ।
Sahitya Me Sthan
साहित्य मे स्थान – हिंदी साहित्य के प्रधान कवि पंत जी का काव्य भाव कला समृध्द है। भावनात्मक तथा चिंतनात्मक काव्य कला सभी दृष्टी से शीर्ष स्थान पंत जी को प्राप्त है। इसीलिए हिंदी साहित्य के लिए पंत जी को सदैव स्मरण किया जाता रहा है, तथा किया जाता रहेगा। उनका स्थान हिंदी साहित्य मे सर्वत्र तथा सर्वोपरि है।
10th Class Science Model Paper
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