Mirabai Ka Jivan Parichay -जीवन परिचय – मीराबाई भक्ति भाव की कवयित्री है। उनके द्रारा लिखे गये पद सीधे ह्रदय को स्पर्श करते है, मीराबाई का जन्म राजस्थान के जाधपुर के मेड़ता के पास ही सन् 1498 ई. (संवत् 1555 वि.) मे चौकड़ी ग्राम मे हुआ था। इनके पिता का नाम रत्नसिंह राठौर था । इनके माता पिता की म्रत्यु इनके बचपन मे ही हो गयी थी। जिसके बाद यह अपने पितामह राव दुदाजी के साथ रहती थी। जो कि कृष्ण की भक्ति करते थे । इसी कारण मीरा पर भी इसका प्रभाव पड़ा।
इसके बाद मीरा का विवाह राणा सॉगा के पुत्र भोजराज से हो गया। लेकिन विवाह के कुछ ही वर्ष के बाद भोजराज की मृत्यु हो गयी, जिसके कारण उनके ह्रदय को भारी अघात पहुचा। इसके बाद वह साधु सेवा मे अपना जीवन व्यतित करने लगी तथा कृष्ण कीर्तन करने लगी। मीरा कृष्ण के भक्ति भाव मे इतना विलिन हो गयी, तथा मीरा का भक्ति भाव इतना बढ़ गया की वह प्रभु प्रेम की दीवानी बन गयी। मीराबाई के वियोग की भावना ही उनकी साहित्य का आधार है। मीराबाई ने अपने जीवन के अंतिम दिन द्वारका मे ही बिताऍ। और वही पर मीरा की मृत्यु सन् 1546 ई. (संवत् 1603 वि.) हो गयी।
रचनाऍ – मीरा की रचनाओ मे ह्रदय की व्याकुलता तथा कृष्ण के प्रति उनके प्रभु-प्रम की वियुक्त अनुभुति है।
उनकी प्रमुख रचनाऍ
१. गीत गोविंद का टीका
२. बरसी का मायरा
३. राग गोविंद
४. राग सोरठा के पद
भाव पक्ष
विरह के भाव – कृष्ण प्रेम मे दिवानी मीराबाई प्रभु के प्रेम मे दिवानी होकर अपने ऑंसुओ से सीचकर प्रेम रूपी बेल बोई थी । मीराबाई ने भगवान कृष्ण के विरह मे जो लिखा उसकी तुलना नही की जा सकती है । मीराबाई की प्रभु प्रेम के प्रति विरह वेदना की तुलना नही की जा सकती।
Mirabai Ka Jivan Parichay
रस और माधुर्य भाव – इनकी रचनाओं मे श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है। तथा माधुर्य भाव प्रधान है । तथा मीरा के साहित्य मे माधुर्य भाव को सबसे श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।
रहस्यवाद – मीरा के कुछ पदो मे रहस्यवाद भी स्पष्ट दिखाई देता है। जिसमे अपने आराध्य के प्रति मिलन मे उत्सुकता के भाव दिखाई पड़ते हे तथा मिलन और वियोग के भाव दिखाई पड़ते है ।
कला-पक्ष
भाषा – मीरा की काव्य मे ह्रदय की मार्मिकता देखने को मीलती है। उनकी भाषा शुध्द साहित्य राजस्थानी संस्कार से युक्त संयूक्त ब्रज भाषा है। ताथा उनके काव्य मे राजस्थानी शब्दो तथा उच्चारणो का बहुत प्रयोग किया है, तथा उनके काव्य, भाषा मे पश्चिमी हिन्दी तथा उनके कई पदो मे भोजपुरी भाषा भी कही-कही दिखाई पड़ती है। तथा मीराबाई के पद अनमोल संपत्ति है जो जो कि मार्मिकता से भरपूर है।
शैली – मीराबाई के पदो मे स्पष्ट रूप से मुक्तक शैली का प्रयोग किया है। तथा उनके पद मे श्री कृष्ण के प्रति भाव से भर देने वाले पद है, जो कि गाने तथा सुनने वाले व्यक्तियो को भाव विभोर कर देते है। उनके पदो मे गेयता है।तथा भाव से भर देने वाले पद उनकी शैली की प्रधान विशेषता है। जो कि सम्प्रेष्ण करता तथा श्रोता के ह्रदय को कृष्ण के प्रति व्याकुलता को व्यक्त करता है।
अलंकार – उपमा रूपक तथा उत्प्रेक्षा, अनुप्रास अंलकार को इनकी रचनाओ मे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
साहित्य मे स्थान – मीरा बाई के ह्रदय मे जो भी वेदना थी, उनका बड़ा ही मार्मिक वर्णन उन्होने अपने पदो मे किया है। जो कि ह्रदय को छुने वाला है मीरा बाई का स्थान श्री कृष्ण के प्रेम-भक्ति के प्रति सर्वत्र है। उनकी विरह वेदना पदो मे स्प्ष्ट ही दिखाई पड़ती है।
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